१७ सितम्बर के दैनिक ’हमारा महानगर‘ में एक बड़ा अच्छा सम्वाद पढ़ने को मिला - अब अमिताभ का कवि सम्मेलन. समाचार था कि गीतकार प्रसून जोशी के सुझाव पर सहमत होकर अमिताभ बच्चन दिल्ली और इलाहाबाद में कवि सम्मेलनों का आयोजन करने की बात सोच रहे हैं.और आशा की जा सकती है कि इस सोचविचार का निष्कर्ष सकारात्मक ही होगा. हिन्दी जगत में कवि सम्मेलनों की एक बड़ी अच्छी परम्परा रही है. मंचों पर अपनी ओजभरी और सरस कविताओं से अनेक दिग्गज कवि श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते रहे हैं और प्रेरणा देते आये हैं. स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में कवि सम्मेलनों ने जन साधारण को बहुत उद्बुद्ध किया है.जिनमें दिनकर, श्याम नारायण पांडेय, बालकृष्ण शर्मा नवीन, बच्चन, छैलबिहारी दीक्षित कंटक, गोपालसिंह नेपाली, बलबीर सिंह रंग से आदिसे लेकर नीरज, वीरेन्द्र मिश्र, सोम ठाकुर, रमानाथ अवस्थी इत्यादि कवियों के नाम उल्लेखनीय हैं. हास्य और व्यंग्य की विधाओं में भी एक से एक धुरंधर कवि मंचों की जान रहे हैं. बेढब बनारसी, काका हाथरसी, शैल चतुर्वेदी, प्रदीप चौबे, गोपालप्रसाद व्यास, अशोक चक्रधर, माणिक वर्मा, ओमप्रकाश आदित्य, गोविन्द व्यास जैसे कवियों ने एक ओर जहाँ श्रोताओं को गुदगुदाया और हँसाया है वहीं कुछ सोचने समझने को भी उकसाया है.
ऐसा नहीं है कि अब कवि सम्मेलन बिल्कुल नहीं होते. परन्तु वे सीमित और सीमाबद्ध होते जा रहे हैं. श्रोताओं की संख्या घटती जा रही है. ऐसे में अगर अमिताभ कवि सम्मेलनों का आयोजन करें तो निश्चित रूप से वे स्तरीय होंगे और हिन्दी काव्य प्रेमियों को आनन्द देंगे. एक समय तक दूरदर्शन पर अच्छे कवि सम्मेलनों का प्रसारण होता था. पर अब वे प्राय: बन्द ही हो गये हैं. कुछ गोष्ठियां अवश्य होती हैं, परन्तु अल्पकालिक और ऐसे समय पर जब हम देख नहीं पाते. शायद अब ये आयोजन इसलिये नहीं होते अधिकांश कवि प्रतिष्ठान विरोधी कवितायें सुनाने लगे थे. और सत्ता को अपनी आलोचना सुनना अच्छा नहीं लगता.
आज टेलिविज़न जैसा सशक्त माध्यम हमारे पास है. प्रसारित होने पर ये एक साथ पूरे देश के दर्शक-श्रोताओं तक पहुँच सकते हैं. ई-टीवी उर्दू और डी डी उर्दू चैनलों पर हर सप्ताह नियमित रूप से मुशायरे प्रसारित हो रहे हैं. तो हिन्दी में क्यों नहीं हो सकते? दूरदर्शन न भी करे तो सहारा, ई-टीवी या महुआ तो प्रसारित कर ही सकते हैं. हिन्दी काव्य रसिक इन आयोजनों का अवश्य स्वागत करेंगे, और अमिताभ बच्चन का आभार मानेंगे.
अन्त में- कुछ कवि सम्मेलनों की रोचक बातें:
एक बार इलाहाबाद के एक कवि सम्मेलन का संचालन श्रीमती महादेवी वर्मा कर रही थीं. उन्होंने जब बच्चन जी को कविता पाठ के लिये आमंत्रित किया तो देखा वे मंच पर नहीं थे. महादेवी जी ने पुन: उनको पुकारा. और बच्चन जी हाल के प्रवेशद्वार से कविता पढ़ते हुये आगे बढे़. कविता थी "इसीलिये खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो.‘ सारा हाल तालियों से गूँज उठा.
एक कवि सम्मेलन में श्यामनारायण पांडे ने हल्दीघाटी का पाठ किया. उसकी कुछ पंक्तियां यों थीं -
राणा ने पूछा मान कहाँ? भामा ने पूछा मान कहाँ?
सब दरबारी गण बोल उठे - है मान कहाँ? है मान कहाँ.
उनके तुरन्त बाद आये बेढब बनारसी, और उन्होंने पढ़ना शुरू किया-
वक्ता ने पूछा पान कहाँ? श्रोता ने पूछा पान कहाँ?
तब प्रेसीडेन्ट भी बोल उठे, है पान कहाँ ? है पान कहाँ?
Saturday, September 19, 2009
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