सवेरे रेडियो खोला तो सुना शैलेन्द्र का एक गाना बज रहा था। याद आगया कि विगत 14 दिसम्बर को शैलेन्द्र की पुण्य तिथि थी। संयोग ही था कि उनका देहांत उस दिन हुआ जिस दिन राज कपूर का जन्मदिन था। शैलेन्द्र से मेरी पहली मुलाक़ात इलाहाबाद में हुई थी, भारतीय जन नाट्य संघ के अखिल भारतीय अधिवेशन में । वह बम्बई से गए थे भाग लेने के लिए। लेकिन वहाँ वह यू.पी.के ट्रूप के साथ शामिल हो गए थे और राजेंद्र रघुवंशी के साथ कई गाने गाए और कंधे पर ढोल लटकाकर नाचे भी थे। उनकी बरसात तब रिलीज़ हो चुकी थी और उनका नाम भी हो चला था। मैं सन् ५३ में बम्बई आया। तब वह माहिम में रहते थे। सलिल दा (संगीतकार सलिल चौधरी) के साथ उनके घर गया तो याद आता है कि कितनी आत्मीयता से मिले थे।
उसके बाद तो कई फिल्मों में भी उनका साथ रहा, जिनमे मैंने संवाद लिखे और उनहोंने गीत। इसलिए उनसे जुडी हुई तमाम यादें हैं। मगर यहाँ मैं एक खास याद की चर्चा करना चाहता हूँ। सुबह रेडियो पर उनका गाना सुनकर यही घटना याद आ गयी थी।
उनदिनों रेडियो सीलोन पर सुबह सात बजे से नयी फिल्मों के गीत बजते थे। जिस दिन दोस्ती के गीत पहली बार बजे उसदिन कि बात है। दोस्ती के गीत लिखे थे मजरूह साहब ने। उसी दिन दोपहर में मजरूह साहब ने बताया कि जैसे ही रेडियो सीलोन पर सवा सात बजे दोस्ती के गाने बजना बंद हुए शैलेन्द्र ने उनको फ़ोन किया और दोस्ती के गानों की बहुत तारीफ़ की और मजरूह साहब को बधाई दी ऐसे अच्छे गीतों की रचना के लिए। शैलेन्द्र की यह विशेषता ही बड़ी विरल थी। तभी तो वह लिख सके थे - बहुत दिया देने वाले ने तुझको, आँचल ही न समाये तो क्या कीजे.
Saturday, December 15, 2007
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7 comments:
आदरणीय मुनीसजी
प्रणाम, नदिया के पार जैसी खूबसूरत फिल्म के निर्देशक और कई फिल्मों के गीतकार मुनीसजी का हिन्दी चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है।
मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप अपनी उन यादों को हम सबके बीच बाँटे|
हिन्दी के दुर्लभ गीतों की महफिल
॥दस्तक॥
मुनीस जी,आप के हिन्दी ब्लोग में शामिल होने से बहुत खुशी हुई।आशा है अब बहुत-सी पुरानी यादें हमरे साथ बाँटेगें।
आदरणीय मुनीसजी ....स्वागत है।
स्वागत है गोविन्द जी.. उम्मीद है आप अपने अनुभवों से हमें समृद्ध बनाएंगे..
हमारी भी शुभकामनाएं ले लीजिए !!!
हिन्दी चिट्ठजगत में स्वागत है।
सुस्वागतम!
आप आए बहार आई.
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