Tuesday, December 25, 2007
एक आभार
आज जन्मदिन है माननीय अटल बिहारी बाजपेयी जी का। श्रद्धा पूर्वक उनका अभिनन्दन करना चाहता हूँ, आन्तरिक शुभकामना के साथ, क्योंकि उनका एक एहसान याद आरहा है। (मेरे कुछ सुधी पाठकों का आग्रह मिला है, कि अपनी यादें और अनुभव सबके साथ बांटता रहूँ, इसीलिए यह याद लिख रहा हूँ।) बात जीवन-मृत्यु के समय की है। उक्त फिल्म में एक डिबेट का सीन लिखा था मैंने। सीन शूट भी हो चुका था। फिल्म पूरी एडिट हो चुकी थी। ट्रायल देखने के बाद तमान लोग सुझाव देने लगे थे कि इस डिबेट के स्थान पर एक गाना क्यों नहीं रखा गया? अक्सर फिल्मों में ऐसा ही तो होता है। यों भी जीवन मृत्यु में गाने सिर्फ दो ही थे। निर्माता सेठ ताराचंद जी भी उधेड़बुन में थे। एक पशोपेश का माहौल पैदा हो गया था। ऐसे में एक बार ट्रायल में हमारे प्रोडक्शन मैनेजर कैलाश पति सिंह अटलजी को ट्रायल में ले आये। फिल्म देखने के बाद थिएटर से निकलने पर अटलजी ने सबसे पहले डिबेट की प्रशंसा की . उसके बाद फिर किसी ने भी डिबेट की जगह गाना डालने की बात नहीं की। उनका यह आभार मैं सदा मानता रहूंगा । मेरी समझ से मैंने तमाम अलग अलग फिल्मों में जो सीन लिखे हैं उनमें यह डिबेट का सीन भी मेरा अन्यतम बढिया सीन है.
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1 comment:
mujhe tajjub hota hai ki film ke screenpaly me log kaise kaise utapatang suggestion dete rahte hai...ye sochane ki baat hai ki ek debate ka scene jo story ko aage badhane mein aham bhumika nibha raha hai...usse hatake wahan gaane dalane ko betuka salah hi kaha ja sakta hai...Aadraniya Ataljee Hindustan ke Prime minister ke alawa bahut bade debater rah chuke hain...ye kahiye ki unki vakshakti unko satta ke galiyaron tak pahuchane mein aham bhumika ada ki...zahir hai ki unko aap jaise prabudh aur Kalam ke dhani vyakti dwara likha debate bahut pasand aaya hoga...shabdo ka ek Itihaas hota hai...usake arth issi ke dwara niyanjit hote hain...aapki prakhar vicharshakti aur shabdo ke chayan ne uss debate ko dilchasp bana diya hai...And finally...this is a democratic country and debate must go on....
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