नये वर्ष के पह्ले दिन
नयी डायरी खोलकर,पहले पन्ने के ऊपर,
लिखिये मेरा अभिनन्दन.
लिखिये मंगल कामना-
प्रगति-सम्रिद्धि पूर्ण हो वर्ष,
शान्ति-प्रीति का हो उत्कर्ष,
सदा रहे आनन्द घना.
या फिर झन्झट छोडकर,
दिल पर ही लिख लीजिये,
रोज याद कर लीजिये.
मन ही मन में मुस्का कर.
Monday, December 31, 2007
Tuesday, December 25, 2007
एक आभार
आज जन्मदिन है माननीय अटल बिहारी बाजपेयी जी का। श्रद्धा पूर्वक उनका अभिनन्दन करना चाहता हूँ, आन्तरिक शुभकामना के साथ, क्योंकि उनका एक एहसान याद आरहा है। (मेरे कुछ सुधी पाठकों का आग्रह मिला है, कि अपनी यादें और अनुभव सबके साथ बांटता रहूँ, इसीलिए यह याद लिख रहा हूँ।) बात जीवन-मृत्यु के समय की है। उक्त फिल्म में एक डिबेट का सीन लिखा था मैंने। सीन शूट भी हो चुका था। फिल्म पूरी एडिट हो चुकी थी। ट्रायल देखने के बाद तमान लोग सुझाव देने लगे थे कि इस डिबेट के स्थान पर एक गाना क्यों नहीं रखा गया? अक्सर फिल्मों में ऐसा ही तो होता है। यों भी जीवन मृत्यु में गाने सिर्फ दो ही थे। निर्माता सेठ ताराचंद जी भी उधेड़बुन में थे। एक पशोपेश का माहौल पैदा हो गया था। ऐसे में एक बार ट्रायल में हमारे प्रोडक्शन मैनेजर कैलाश पति सिंह अटलजी को ट्रायल में ले आये। फिल्म देखने के बाद थिएटर से निकलने पर अटलजी ने सबसे पहले डिबेट की प्रशंसा की . उसके बाद फिर किसी ने भी डिबेट की जगह गाना डालने की बात नहीं की। उनका यह आभार मैं सदा मानता रहूंगा । मेरी समझ से मैंने तमाम अलग अलग फिल्मों में जो सीन लिखे हैं उनमें यह डिबेट का सीन भी मेरा अन्यतम बढिया सीन है.
Thursday, December 20, 2007
धन्यवाद
मुझे इतनी सारी प्रतिक्रियाएं मिलीं बहुत अच्छा लगा । आभारी हूँ उन सबका जिन्होंने ऐसा स्वागत किया। मैं बराबर लिखता रहूंगा यह मेरा वादा है । एक अनुरोध है। मैं अपना नाम मूनिस लिखता हूँ। आप लोग भी ऐसे ही लिखें तो अच्छा रहेगा। आपका ही, गोविन्द मूनिस
Saturday, December 15, 2007
शैलेन्द्र की याद
सवेरे रेडियो खोला तो सुना शैलेन्द्र का एक गाना बज रहा था। याद आगया कि विगत 14 दिसम्बर को शैलेन्द्र की पुण्य तिथि थी। संयोग ही था कि उनका देहांत उस दिन हुआ जिस दिन राज कपूर का जन्मदिन था। शैलेन्द्र से मेरी पहली मुलाक़ात इलाहाबाद में हुई थी, भारतीय जन नाट्य संघ के अखिल भारतीय अधिवेशन में । वह बम्बई से गए थे भाग लेने के लिए। लेकिन वहाँ वह यू.पी.के ट्रूप के साथ शामिल हो गए थे और राजेंद्र रघुवंशी के साथ कई गाने गाए और कंधे पर ढोल लटकाकर नाचे भी थे। उनकी बरसात तब रिलीज़ हो चुकी थी और उनका नाम भी हो चला था। मैं सन् ५३ में बम्बई आया। तब वह माहिम में रहते थे। सलिल दा (संगीतकार सलिल चौधरी) के साथ उनके घर गया तो याद आता है कि कितनी आत्मीयता से मिले थे।
उसके बाद तो कई फिल्मों में भी उनका साथ रहा, जिनमे मैंने संवाद लिखे और उनहोंने गीत। इसलिए उनसे जुडी हुई तमाम यादें हैं। मगर यहाँ मैं एक खास याद की चर्चा करना चाहता हूँ। सुबह रेडियो पर उनका गाना सुनकर यही घटना याद आ गयी थी।
उनदिनों रेडियो सीलोन पर सुबह सात बजे से नयी फिल्मों के गीत बजते थे। जिस दिन दोस्ती के गीत पहली बार बजे उसदिन कि बात है। दोस्ती के गीत लिखे थे मजरूह साहब ने। उसी दिन दोपहर में मजरूह साहब ने बताया कि जैसे ही रेडियो सीलोन पर सवा सात बजे दोस्ती के गाने बजना बंद हुए शैलेन्द्र ने उनको फ़ोन किया और दोस्ती के गानों की बहुत तारीफ़ की और मजरूह साहब को बधाई दी ऐसे अच्छे गीतों की रचना के लिए। शैलेन्द्र की यह विशेषता ही बड़ी विरल थी। तभी तो वह लिख सके थे - बहुत दिया देने वाले ने तुझको, आँचल ही न समाये तो क्या कीजे.
उसके बाद तो कई फिल्मों में भी उनका साथ रहा, जिनमे मैंने संवाद लिखे और उनहोंने गीत। इसलिए उनसे जुडी हुई तमाम यादें हैं। मगर यहाँ मैं एक खास याद की चर्चा करना चाहता हूँ। सुबह रेडियो पर उनका गाना सुनकर यही घटना याद आ गयी थी।
उनदिनों रेडियो सीलोन पर सुबह सात बजे से नयी फिल्मों के गीत बजते थे। जिस दिन दोस्ती के गीत पहली बार बजे उसदिन कि बात है। दोस्ती के गीत लिखे थे मजरूह साहब ने। उसी दिन दोपहर में मजरूह साहब ने बताया कि जैसे ही रेडियो सीलोन पर सवा सात बजे दोस्ती के गाने बजना बंद हुए शैलेन्द्र ने उनको फ़ोन किया और दोस्ती के गानों की बहुत तारीफ़ की और मजरूह साहब को बधाई दी ऐसे अच्छे गीतों की रचना के लिए। शैलेन्द्र की यह विशेषता ही बड़ी विरल थी। तभी तो वह लिख सके थे - बहुत दिया देने वाले ने तुझको, आँचल ही न समाये तो क्या कीजे.
Monday, December 10, 2007
मैं अपना दुःख नहीं बेचता
मैं अपना दुख नहीं बेचता,फिर भी लोग भुना लेते हैं। लेखों में, कविताओं में , मंचों और सभाओं में, साहित्यिक गलियारों में,मेरा दर्द भुना लेते हैं। अपना नाम कमा लेते हैं।दर्द मिला है जिनसे मुझको, ऐसी भला पडी क्या उनको,ये दुख हरना ही होता तो पहले ही देते क्यों मुझको?बेशक अश्रु बहा लेते हैं .मेरा दर्द भुना लेते हैं ।।
Thursday, November 29, 2007
नमस्कार
कभी कुछ याद आता है कभी कुछ सूझ जाता है।
कहीं कुछ पढ़ते पढ़ते भी उभर कर प्रश्न आता है।
कभी कुछ देखकर सुनकर बहुत जी तिलमिलाता है।
वही सब व्यक्त करने के लिए खोला ये खाता है॥
कहीं कुछ पढ़ते पढ़ते भी उभर कर प्रश्न आता है।
कभी कुछ देखकर सुनकर बहुत जी तिलमिलाता है।
वही सब व्यक्त करने के लिए खोला ये खाता है॥
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